मंदिर की आरती, मस्जिदों की अज़ान सी होती है बेटियाँ
मंदिर की आरती, मस्जिदों की अज़ान सी होती है बेटियाँ
गिरिजा घरों की रोशन मोमबत्तियाँ, गुरुद्वारों की गुरूवाणियाँ
मंदिर की आरती, मस्जिदों की अज़ान सी होती है बेटियाँ
ज़िन्दगी की कड़वाहटों में मिश्री सी घुल जाती हैं बेटियाँ,
अनगिनत रंग पंखों पर लिए चंचल तितलियों सी होती हैं बेटियाँ,
ज़िन्दगी की ख़ामोशियों में चिड़ियों सी चहकती हैं बेटियाँ,
अँधेरों में रोशनी की किरण बन कर उतरती हैं बेटियाँ,
ख़ुदा की नेमत, मन्नत के धागों सी होती हैं बेटियाँ,
अश्कों को ज़ब्त कर मुस्कुराती हैं बेटियाँ,
खिल उठते हैं बेशुमार गुल जब खिलखिलाती हैं बेटियाँ
ख़ामोश हो जाते हैं आँगन जब उठती हैं इनकी डोलियाँ,
ख़ुदा की इनायत होती है तो पैदा होती हैं बेटियाँ,
थाम लीजिए इनकी नन्ही उंगलियाँ,
कहीं लौट न जायें नन्ही परियाँ