मन
मन
मन चल उस ज़मीन पर
जहाँ परियों का मेला न हो
जहाँ हर समय सुबह न हो
और खुशियों का रेला न हो
जहाँ मदहोशी का
आलम न हो
बड़ी बड़ी बातें न हो
रातों से लंबे सपने न हो
जहाँ खेत हो गाँव के
जूते हो हल
गर्दन हो बैलों के
कंधे हो किसान के
जहाँ प्यार हो
तकरार हो
और
मनुहार हो
मन चल उस ज़मीन पर
जहाँ परियों का मेला न हो