मन की रोशनी से... #विकलांग
मन की रोशनी से... #विकलांग
मुझे सम्मान चाहिए, दया की भीख नहीं।
कोई सहानुभूति नहीं, कोई सीख नहीं।
मैं भी हूँ एक इंसान, नहीं कोई हैवान।
चाहिए मुझे भी अधिकार, आपके समान।
करुणा का छलछलाता सागर नहीं चाहिए,
कोरी सहानुभूति की बाढ़ नहीं चाहिए।
लोग मुझे भी समझे एक सहज इंसान।
महज़ यहीं है मेरा एक अरमान।
वाह्य सुंदरता नहीं न समझ पाता हूँ।
आंतरिक गुणों को ही देख पाता हूँ।
मदद का तलबगार नहीं ,
परवाह नहीं हँसी की।
ठोकरों से राहें बनाता हूँ,
ठोकर खाकर संभल जाता हूँ।
मन की रोशनी से,
प्रकाशवान है, अंतर्मन मेरा।
मैं नेत्रहीन हूँ,
पर क्या देखकर तुम चलते हो ?
स्वयं को स्वयं ही एक,
गहन गर्त में धकेलते हो।