" मन की एक हंसी "
" मन की एक हंसी "
चुप चाप पंखे को ताकने से हल नहीं निकलता,
कभी कभी दोस्त भी बना लिया करो,
चुप्पी के सागर में गुम हो जाओगे,
बोल के दो शब्द मुस्कुरा लिया करो,
मुझे पता है, गर्मी, उदासी, बोरियत की,
चादर बना कर, चेहरे से चिपका रहे हो,
कहीं सच में हंसी न आ जाये,
इसीलिए, चेहरा घुमा रहे हो,
बड़ी कीमती होती है हंसी, इतने हलके में मत लेना,
दवा बना कर सिरहाने पर रखना
किसी और को मत देना, जब तुम खोजोगे इसे,
जीवन की शाम में, तब बहुत भली लगेगी,
नन्ही सी मुस्कराहट भी मिल जाये तो,
उम्मीद की कोपल सी,
एक कली लगेगी, अभी हो सके तो हंस लो,
इसी में तुम्हारा भला है, बिना मन के हंस लेना भी,
एक तरह की कला है ।