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Rekha Singh

Inspirational

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Rekha Singh

Inspirational

एक पड़ाव और शाम

एक पड़ाव और शाम

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थोड़ा बहुत तो सभी सहते हैं

कुछ कहते हैं, कुछ नहीं कहते हैं

बैठ कर जमाने को कोसने से अच्छा है

खुद की दीवारें चाक चौबंद कर लो

इतनी शिकायत है इस मौसम से

तो खिड़कियाँ अपनी बंद कर लो

क्यों खोज रहे हो, अंधेरे में सुई ?

रौशनी ही जरा सा बुलंद कर लो


रोज कोसते हो रफ़्तार जमाने की

गति खुद अपनी ही क्यों ना मंद कर लो ? 

जब दो ही रोटियाँ मिलनी है, किस्मत में

तो किसी कम सूखी को ही पसंद कर लो

क्या सोचते हो?

अब कहाँ आएंगे लौट कर तुम्हारे बच्चे ? 

मान लो किसी को अपना नन्हा कन्हैया

और खुद को ही यशोदा या नन्द कर लो


कभी नहीं आ पायेगी, बूढ़े चेहरों पर लालिमा

अतीत की खुशबुओं में, खुद को ही

मकरंद कर लो

कब से चल रहे हो थक थक के

मंज़िल तो कभी मिली नहीं

क्यों न रुक कर एक पड़ाव पर ही

सारे जीवन का आनंद भर लो ।


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