'मुसीबत है '
'मुसीबत है '
बड़ी मुसीबत है,
कुछ बोल दो तो वो गुस्से में उबाल खाते हैं,
न बोलो तो मुँह चिढ़ाते हैं,
दिन भर तैरते हैं अपने ही ज्ञान में ,
सर फोड़ रहें हैं दूसरों के सम्मान में ,
अपनी गर्दन को तो कपड़ों से छुपा डाला है,
पडोसी के लिए सिल रहे जूतों की माला है,
कलम और दवात से घंटा क्रांति हुआ करती है ,
स्याही को तो चेहरे पर फेंक कर शांति हुआ करती है,
देश का युवा बड़ा ही आज्ञाकारी है,
उसे बसों के शीशों को तोड़ने की बीमारी है,
तोड़ कर शीशे बड़े मन से आग लगाता है,
फिर वही बालक लौट कर पानी भी लाता है,
किसको-किसको देखें , नज़ारे दिल तोड़ देते हैं,
बदलेगा कुछ -कभी उम्मीद छोड़ देते हैं,
सबको समझा कर हार ही गए थे ,
खुद को समझाया भी कि बेकार ही गए थे,
अब खुद की चादर में मुँह छुपा लेते हैं,
तकिये के नीचे अपना महल बना लेते हैं।