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Rekha Singh

Abstract

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Rekha Singh

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" भाई रुको तो?"

" भाई रुको तो?"

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इतने कहे पर कुछ कहा नहीं जाता, 

क्या करें, यूँ देख कर चुप रहा नहीं जाता,

तुम्हीं ने कहा था, ये घर है मेरा,

हवा है मेरी और शहर है मेरा,

पानी के झरने, प्रकृति की खुशबू,

जन्मी यही हूँ तो पर्यावरण है मेरा,

ये जल और प्रकृति, तुम्हारी भी माँ हैं, 

क्यों नोचते हो? ये न्यायसंगत कहाँ है?

भाई, रुको तो, 

सिसकी सुनो तो,

रोती है धरती, भिगोती है धरती,

अपने संहारक को खुद मैंने जना है,

हवा, जल और प्रकृति तुम्हारे नहीं थे, 

जीवन की कोंपल भी उस माँ ने दिए थे,

बड़े बेशरम हो, किसी की सुनो तो 

अपनी ही मृत्यु, खुद ही मत चुनो तो,

खुद ही मत उजाड़ो, अपने ही घर को ,

जरा तो सम्हालों, अपने शहर को,

वही अब जीने का अंतिम चरण है,

जिसे कहतें हैं प्रकृति, जल और पर्यावरण है।


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