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Rekha Singh

Others

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Rekha Singh

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दर्द और वीणा

दर्द और वीणा

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जाने दो यार, 

देखा जायेगा,

कुछ यादें ही तो निकालनी है न,

छोटे से मन में,

आखिर कितना समायेगा ? 


अभी जब आ रही है हँसी,

तो मत रोको, हँस लो,

अपनी करनी ही ऐसी है की,

कल फिर रुलाएगा ,

कहाँ जाना है ?

क्या बैठ कर सोचते हो ?


रास्ता खुद आकर एक दिन,

पैरों को बुलाएगा,

एक बार में ही कर देना,

हिसाब चुकता,

बस दिख भर जाये,

जरा सा वो ,


कौन बेवजह बैठ कर ,

रोज बिसात बिछायेगा ,

बिना कुछ सोचे ही,

बाँट देना, आखिरी बूँद,

कभी न कभी तो आसमां में

मेघ आएगा,

गरज होगी, तो वही खोज लेगा ,

जज और कचहरी,


चोर खुद ही को क्यों चोर बताएगा,

जब हार ही गये हो,

मस्तिष्क का गणित,

तो अब बस चैन से बैठो,

मन खुद ही, 

दर्द की वीणा बजायेगा,

जाने दो यार, देखा जायेगा ।


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