संघर्ष
संघर्ष
आज सुबह काफी ठंड़ थी ,
कोहरे ने पेड़ों का आश्रय लिया था ,
जमीन गीली सी थी,
हवा की गति भी बुलंद थी,
आगे वाले पैरों ने पीछे वाले पैरों को धक्का दिया ,
भाई चल न ,
क्या छुपा बैठा है ,
देख दूसरों का प्रयत्न,
जीवन जीने का यत्न,
सभी तो लड़ रहें हैं ,
ठंड़ से झगड़ रहें हैं,
तू ही कुछ रास्ता बना ,
गीली सी मिटटी में ,
पैरों को जमा ,
अभी हाँथ चुपचाप सोया है,
कल रात की नींद में ही खोया है,
बालों और आँखों से तो उठा ही नहीं जाता,
कोई क्यों नहीं समझाता ?
अभी सूरज आएगा,
तुम्हारा दर्द मिट जाएगा,
सूर्य यानि भरोसा ,
सूर्य यानि सच,
तब तक के लिए ,
जिन्दा तो रहो,
अपने मन से कहो ,
बस एक कदम और ,
बस एक कदम और ।