मन की बात
मन की बात
भावनाओं में बह कर
कुछ ऐसा न बोल देना
है हर कोई अपना यहाँ
ऐसा न सोच लेना !
ना दो अहमियत किसी को
जो तुमको वो आँक पाए
दिल है जब तुम्हारा तो
कोई क्यों झांक पाए !
हर किसी की ज़िन्दगी में
एक चेहरा है सिर्फ अपने लिए
मुमकिन नहीं है ये राज़
हर किसी को बताना !
बात ज़ुबान से निकल गयी तो
नहीं रहती वो अपनी भी
जब रह नहीं पाई सीने में
तो किस को क्या दोष देना !
जुदा है सोच हर किसी की
हर आरज़ू अलग है
हर कोई हो अपने जैसा
ऐसा कहाँ सबब है !
जो दिख रहा है, वो सही है
अब ऐसा भी नहीं है
नज़रिया है सब का अपना
हो एक सा, न सोच लेना !
संस्कार की परिभाषा
वहीं तक सही है
जहां अपनी हो सीमा रेखा
पूर्णविराम वहीं है !
निर्धारित है लक्ष्मण रेखा
उसको मत तोड़ देना
भावनाओं में बहक कर
कुछ ऐसा न बोल देना !

