अना
अना
पता नहीं ये बेचैनी क्यों है
इतनी ज़्यादा परेशानी क्यों है
रुकती नहीं ये सांसे क्यों है
थमते नहीं ये आँसू क्यों है ?
क्या ग़लती हो गयी मुझसे ऐसी
झेल रही हूँ एक सज़ा के जैसी
आवाज़ बन्द और लब सिले हैं
न जाने मुझसे कितने गिले हैं ?
तन्हाई सता रही है मुझको
अकेलापन खा गया है मुझको
जब भी मैने हँसना चाहा
ग़मों ने गले लगाया मुझको
ज़िन्दगी कोई सज़ा नहीं है
कोई भी ग़लती गुनाह नहीं है
कुछ भी ऐसा घटा नहीं है
है ऐसा तो मुझे बता दो
मैं तो सदा से ऐसी ही थी
न कुछ मांगा न
कुछ चाहा
जितना तुमने दिया है मुझको
हँस कर मैंने गले लगाया
फिर मैं क्यों आज गुनहगार हुई
नफरतों का शिकार हुई
जब खुद के लिए जीना मैने
चाहा ज़िन्दगी से बेज़ार हुई
तुमको जितना चाहा मैंने
उम्र भर साथ निभाया मैंने
क्या कोई इतना कर सकता था
तुम्हारी अना को जर सकता था ?
अरसे से मैं खड़ी अकेली
तन्हाइयों से लड़ी अकेली
कभी तो करोगे गिला तुम मुझसे
तुम में खुद को ढूंढ रही हूँ
फासले बढ़ते जायेंगे ऐसे
खामोशी कोई हल नहीं है
जीने का कोई मक़सद चाहिए
बिन मकसद कोई कल नहीं है !!