खामोशियाँ
खामोशियाँ


खामोशियाँ बोल सकती हैं
बहुत सी बातें
कह जाती हैं सब अनकही
सी बातें
खोल देती हैं ये अनबूझे सब
राज़ दिल के
समेट के रखे सदियों से
एहसास दिल के
कहाँ कह पाता है कोई इस
कदर जज़्बात अपने
लबों तक आते आते कँपकँपा
जाते है अल्फ़ाज़ अपने
ज़ुबान की क्या जुर्रत के कह
पाए कुछ भी
ये तो खामोशियाँ ही हैं जो
कह जाने का दम रखती है
फिर भी बदनाम ज़ुबान है और
कहने को कैंची सी चलती है
कसीदे हैं खामोशी के क्योंकि
अपनी चाल नाजुकता से चलती है
खामोशियाँ बोल देती है सब उनको
जिनकी बातें भी नहीं होती
इश्क़ उनका भी कायम रखती है
जिनकी मुलाकातें नहीं होतीं
खामोशियों को कभी किसी से
कम तर मत समझ लेना
कि आती है इनको कला
अल्फ़ाज़ों से बेहतर कह पाने की !