मैं कछुआ तुम खरगोश
मैं कछुआ तुम खरगोश
उम्र में कुछ साल ज़्यादा मैं
और उम्र में कुछ साल कम हो तुम
है उम्र का ये जो फ़ासला
इस कशमकश का क्या मैं करूँ ?
तुम कहते हो क्यों पहले जन्मी
इतनी क्या थी तुमको जल्दी
कुछ देर तुम रुक सकती थी
इन्तज़ार तुम कर सकती थी !
पर मैं थी कछुआ तुम खरगोश
निकल गयी आगे तुम रहे बेहोश
चली तो थी कछुए की चाल
क्या मालूम खरगोश का हाल !
नहीं सोते तो साथ हम आते
सालों लग गए तुम्हें जगाते
मैं तो आज भी वैसे ही जगती
देख रही हूँ उम्र ये घटती !
तुम को अब भी नींद है प्यारी
हर पल सोने की तैयारी
न तुम जागो न तुम देखो
घटती हुई इस उम्र की पारी!
मैं फिर निकल जाउंगी आगे
तुम फिर कहीं सो मत जाना
खरगोश की तुम ओढे हो खाल
पर चल लेना कछुए की चाल !
राह में कुछ पल रुक जाउंगी
तुमसे कदम मिलाने को
इंतज़ार भी कर लूंगी मैं
फासले उम्र के मिटाने को !
फिर न कुछ कम न ज़्यादा होगा
सब कुछ आधा आधा होगा
साथ चलने का इरादा होगा
उम्र भर का वादा होगा !
अब की जो रह गया अधूरा
अगले जन्म में होगा पूरा
तुम चल लेना कछुए की भाँति
और सो लूँगी मैं खरगोश की भाँति!!