STORYMIRROR

अहम

अहम

1 min
451


पता नहीं ये बेचैनी क्यों है

इतनी ज़्यादा परेशानी क्यों है

रुकती नहीं ये साँसे क्यों कर

थमते नहीं ये आँसू क्यों है ?

कहाँ पे ग़लती हो गयी ऐसी

ज़िन्दगी हो गयी सज़ा के जैसी

आवाज़ बन्द और लब सिले है

खामोशी में जाने कितने गिले है?

तन्हाइयों का एहसास नहीं है

अकेलेपन का भास नहीं है

मेरी खुशी क्यों रास नहीं है

अहम क्यों आभास नहीं है ?

ज़िन्दगी है, कोई सज़ा नहीं है

कोई भी ग़लती गुनाह नहीं है

कुछ भी ऐसा घटा नहीं है

है ऐसा तो कह सकते हो

मैं तो सदा से ऐसी ही थी

न कुछ मांगा

न कुछ चाहा

जितना तुमने दिया है मुझ को

खुशी से मैंने गले लगाया

क्यों मैं फिर गुनाहगार हुई

नफ़रत का शिकार हुई

जब भी जीना चाहा मैंने

क्यों ज़िन्दगी से बेज़ार हुई ?

तुमको जितना चाहा मैंने

ता उम्र साथ निभाया मैंने

क्या कोई इतना कर सकता था

तुम्हारे अहम को जर सकता था ?

अरसे से मैं खड़ी अकेली

तन्हाइयो से लड़ी अकेली

तुम में खुद को ढूंढ रही हूँ

अब शायद मैं टूट रही हूँ

फासले बढ़ते जाएंगे यूँ ही

खामोशी कोई हल नहीं है

जीने का कोई मकसद चाहिए

बिन मकसद कोई कल नहीं है !!


Rate this content
Log in