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Shalvi Singh

Tragedy

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Shalvi Singh

Tragedy

मन की बात (एक नारी का मन)

मन की बात (एक नारी का मन)

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स्त्री सिर्फ़ तब तक तुम्हारी होती

जब तक वो तुमसे रुठ लेती,लड़ लेती।

आँसू बहा-बहा कर और देती उलाहना तुम्हें।

कह देती जो मन में आता है, बिना सोचे, बे-धड़क।

लेकिन जब वह देख लेती है, उसके रुठने का

उसके आँसुओं का।

कोई फर्क नही पड़ता तो यकायक रुठना छोड़ देती है, रोना छोड़ देती है।

मुस्कुराकर, मन मानकर जवाब देने लगती

तुम्हारी बातों पर समेट लेती है खुद को

किसी कछुऐ की तरह अपने ही कवच में

और तुम समझ लेते होकि सब कुछ ठीक हो गया है।

तुम जान ही नहीं पाते कि ये शांत नही है,

मृतप्राय हो चुकी है।

कहीं न कहीं गला घोंट दिया है, उसने अपनी भावनाओं का।

और अब जो तुम्हारे पास है, वह तुम्हारी हो कर भी तुम्हारी नही।

क्योंकि स्त्री सिर्फ तब तक तुम्हारी होती

जब तक उसे सम्मान मिलता है।



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