***मन का मकान*****
***मन का मकान*****
क्यू लिपटकर रह न पाए रूह से एहसास भी
चाहते थे हम तो दिल के पास रहना खास भी।
हाल-ए-दिल अब कैसा हैं क्या बताए हम सनम
ख़्वाब हमने देखें थे तुमसे लगाई आस भी।
क्या लड़कपन था मेरा जो बात समझा पाई ना
कंपकंपाये लब ने लफ़्ज़ों से बुझाई प्यास भी।
मन के कहने पर कभी भी फैसला ना कीजिये
बात छोटी हो या बड़ी दिमाग़ रक्खो पास भी ।
अब सूना रखना नहीं मन के मकानों को अभी
रोशनी फिर आएगी करना "नीतू" प्रयास भी।

