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Devendra Tripathi

Abstract

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Devendra Tripathi

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मन का मैल

मन का मैल

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मुझे काले कपड़ों में मैल दिखती रही,

हर रोज सफ़ेद चादर पर लेटता रहा,

मेरी नज़रे दूसरों से सवाल करती रही,

मैं खुद अपने सवालों से भागता रहा,

खुद को समझने की कोशिशें बहुत होती रही,

अपने दिल को सफेद से काला करता रहा।

काले कपड़े दिन व दिन चमकदार होते रहे,

सफेद चादरों मे रोज सिलवटें पड़ती रही,

हर दिन सफेद चादर को सही करते रहे,

ज़मीर का हर जर्रा तार तार होता रहा,

ये मन हर रोज बेखौफ होता रहा,

अपने दिल को सफेद से काला करता रहा।

बेखबर दिल खुद को रोज समझाता रहा,

हर दिन एक नया फ़लसफ़ा बनाता रहा,

दूसरों को बहुत कुछ समझाता रहा,

अपने चादर को हर रोज मैला करता रहा,

अपने दिल को सफेद से काला करता रहा। 


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