बेतरतीब सी बिखरी जिंदगी
बेतरतीब सी बिखरी जिंदगी
बेतरतीब सी बिखरी है ये जिंदगी,
समेटने में बीती जा रही है,
तेज दौड़ रही है ये जिंदगी,
रेत सी फिसलती जा रही है,
ये बेतरतीब सी बिखरी जिंदगी....
कुछ बेपरवाह कुछ ढीठ सी हो गयी है,
कभी तेज कभी धीरे भाग रही है,
हर कोई पीछे से खींच रहा है,
अपने धुन में चलती जा रही है,
ये बेतरतीब सी बिखरी जिंदगी.....
ठोकर लगती है, चोट लगती है बहुत बार,
कुछ सपनों के कुछ अपनों के होते है,
गलत सही सोचने की फुर्सत तक नहीं है,
बस उसी रास्ते पर चलती जा रही है,
ये बेतरतीब सी बिखरी जिंदगी......