मन का द्वन्द
मन का द्वन्द


मन मे उठता द्वन्द हमारे ,
किसको हाल बताऊं ।
कोई समझे पीर हमारी ,
दिल का हाल सुनाऊं ।।
कोई ऐसा हो अपना जो ,
दिल का बोझ उतारे ।
घनीभूत मन की पीड़ा को ,
करे जो दूर हमारे।।
कभी कभी जीवन मे ऐसा ,
द्वन्द उमडता रहता है ।
कहना हो जाता दूभर मन,
अन्दर अन्दर घुटता है ।।
माता पिता गुरू जीवन की,
एक अलौकिक सत्ता है ।
आशिष प्यार मिले जिनको,
उनको न द्वन्द यह खलता है ।।
बुद्धि विवेक का थाम के ,
दामन जो कोई चलता है ।
कोसो रहता दूर द्वन्द दुख ,
आकर पल मे मिटता है।।