मन चाहता है कि
मन चाहता है कि


मन चाहता है कि
सिर्फ मैं हूँ और तुम हो,
और बस ये मोहब्बतें,
एक अपनी ही दुनिया में।
उन नदियों के बीच,
उन पहाड़ों के ऊपर,
जहाँ जन्नत से नजारे हो,
और हम तुम
एक दूसरे के सहारे हो।
बर्फ की चादर में लिपटे,
तुम हम उन मखमली वादियों में,
अपने ख्वाबों का आशीयाना सजाये,
कभी उन झरनों से झूले,
कभी उन नदियों मे खेलते हुए,
उन वादियों की सैर लगाएं।
मन चाहता है कि
उस चांदनी रात में
सितारों की बारात में,
शहर की भीड़ से दूर,
सिर्फ एक दूसरे के
इश्क़ में चूर,
हम बस खो जाएं।