छूप छूप के
छूप छूप के
हर शाम अपनी खिड़की से,
कभी जूल्फों को सुलझाते हुए,
कभी मंद मंद मुसकाते हुए,
कभी कोलेज के बागानों में,
कभी केन्टीन के आईने में,
ना जाने कितनी बार
मेरे दिल ने दरखास्त कि,
के जो ख्वाबों में है
बयान हर ख्वाहिश कर दे तू।
जो तेरी सांसों में घुली है वो,
हर गुज़ारिश बयां कर दे तू।
छूपा लेगा कब तक जो
इश्क़ तेरे दिल में है,
बता दे कि वक़्त करवट ना ले ले।