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Mayank Saxena

Others

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Mayank Saxena

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आवाजों का जंगल

आवाजों का जंगल

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कुछ आवाजें दब सी गयी हैं, 

कितनी तो सिसकियों में सिमट सी गयी हैं, 

कितनी बातें कह कर खामोशी के

आगोश में सिमट सी गयी हैं।


आवाजों के इस जंगल में, 

दिल की आवाजें ना जाने क्यूँ

कहीं खो सी जाती है, 

सुन सको तो सुनो,

इन खामोश सी आवाजों को, 

कितनी कहानियों से रूबरू हो जाओगे, 

कितने ख्वाब को सुन पाओगे।।


आवाजों के इस जंगल में, 

कितनी आवाजें खो सी जाती हैं, 

ना फिर वो कभी कुछ कह पातीं हैं, 

ना फिर कभी वो सुनीं जाती हैं, 


आवाजों के इस जंगल में, 

हर आवाज की एक पहचान हैं, 

कुछ बुलंद होकर अपनी बात रखते हैं, 

कुछ शालीनता से अपनी राय रखते हैं।।



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