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Mayank Saxena

Others

3  

Mayank Saxena

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ख्वाहिशें

ख्वाहिशें

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हजारों ख्वाहिशें टूटीं 

हजारों ख्वाब बिखरे हैं, 

बस एक दिल की चाहत में, 

ना जाने कितने सपने टूटे हैं, 

मगर ये दिल है कि मानता नहीं है।। 


कितनी रात आंखों से

नींदे ओझल हुई हैं , 

कितनी बेचैनी ने घेरा, 

कितने खामोश हम रहे हैं, 

मगर ये दिल है कि मानता नहीं है।। 


अधूरे ख्वाब, अधूरी ख्वाहिशों, 

कि शायद आदत हो चुकी है, 

अंधेरी रातों में सूनी राहों में, 

भटकने की आदत हो चुकी है, 

मगर ये दिल है कि मानता नहीं है।। 


कि ना आयेंगे वो पल वापस, 

और ना ही वो वापस आएंगे, 

तो इंतज़ार क्यों करना, 

ये ही समझाता रहता हूँ, 

मगर ये दिल है कि मानता नहीं है।। 



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