तासीर-ए-इश्क
तासीर-ए-इश्क
तासीर-ए-इश्क का खुमार चढ़ा कुछ इस कदर मुझे पर,
कि हर राह मे उनका अक्स नज़र आता है,
सितारे कितने भी हो आसमान में,
मगर मुझको तो बस वो ही नज़र आता है,
बारिश की बुंदे जब भी उनकी आंखो को छूती हैं,
भीगा भीगा मुझे हर शख्स नज़र आता है,
ना जाने कैसी महक है उनकी सांसों की,
बस एक ख्याल उनका मेरी रूह को महका जाता है,
बड़ी फुर्सत से बैठा हूँ तेरे बारे मे लिखने,
मगर स्याही कभी तो कभी लफ्ज़ भूल जाता हूँ।