मज़दूर
मज़दूर
हर रंज पर मेरे, एक तंज़ तुम्हारा है
होठों पे हँसी रखना, अंदाज़ हमारा है।
गुस्ताख़ जमाने ने हर ज़ख्म दिए हमको
ज़ख्मों को छुपा लेना दस्तूर हमारा है।
महलों में तुम पले हो, हम खाक में बढ़े हैं
दुनिया की ये दीवारें, क्या कसूर हमारा है ?
दर्दे सितम की हद तक, तुमने हमें सताया
ये हद ना पार करना, आगा़ज़ हमारा है।
मजदूर को गिराकर उठ भी ना पाओगे तुम
हमने ही सब बनाया, निर्माण हमारा है।