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Bharti Bourai

Classics

3  

Bharti Bourai

Classics

मित्र

मित्र

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आकर्षण विकर्षण

में बँधा हुआ 

परिवर्तन परिवर्धन 

करता है मित्र !


साथ हँसता और रोता 

बिन कहे मित्र !

गिरते ही संभालने चला 

आता है मित्र !


कई रोगों की अचूक दवा

बनता है मित्र !

सूर्य की रोशनी बन हरता 

है तम मित्र !


जीवन का सौभाग्य मिले 

जो ऐसा मित्र।


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