मिल्कियत
मिल्कियत




गंवाइए तब,
जब खुद कमाया हो,
विरासतों से मिल्कियत
आंकी नहीं जाती।
बादशाह आज हो
कल रहो ना रहो,
घरों को बेचकर जागीर
बनाई नहीं जाती।
सुबह उठेगा तो
क्या कहोगे उसको
तस्वीरों के हर रंग की
भरपाई नहीं होती।
हिसाब खुद ही लिखा
खुद ही मिटा दिया उसको
इस तरह तो किसी कर्ज की
माफी नहीं होती।
वो जानते थे मुझे
और मैं भी उन्हें जानता था
फिर भी हर बार तार्रुफ़
कोई सफाई नहीं होती।
मुझे मालूम है,
मेरे हाथों में छोटी है लकीर
सिफारिशों से कोई लकीर
बढाई नहीं जाती।
तुम्हारी आंखें देखती
कुछ हैं और कहती कुछ हैं
बातियाँ दिए में बिना तेल
जलाई नहीं जाती।
खैरख्वाह इक तुम्हीं हो
खुदा भी तुम्हीं
मुल्क सभी का है मान लो,
तो जगहँसाई नहीं होती।।