मीरा
मीरा
मैं ढूँढ रही थी खुद को
तुम्हारे भीतर
और ढूँढ रही थी कुछ शब्दों को
हृदय का आवेग
बयान करने के लिए।
मन में भरा प्रेम
स्वयं को हार जाने का अभिप्राय, मिल कर
बनने लगा है प्रतीक्षा।
एक सुंदर श्याम वर्ण के
स्वप्न को लेकर
आह! बन जाए मेरा शरीर
नीले रंग की, छिप जाती
इस रात में
जैसे कोई निर्विकार मीरा,
जिसके प्रेम का अंत नहीं
या प्रतीक्षा की सीमा नहीं।
कल्पना के मन मंदिर में
निराकार कृष्ण को
धारण करते हुए
संज्ञाहीन घोषणा
"मैं तुम्हारा हूँ कृष्ण"।
नि:स्वार्थ ....निर्विकार मीरा,
प्रतिबिंबित मन
भिन्न एक दुनिया
जहाँ घृणा नहीं
प्रताड़ना नहीं
है केवल कृष्णमय अनुभव।