महरूम
महरूम
जब नाम लिखा तेरा कलम से,
उठ गई उंगलियां मुझ पर।
जब चमका चेहरा तेरे नाम से,
उठ गई उंगलियां मुझ पर।
जब महका तन तेरे स्पर्श से,
उठ गई उंगलियां मुझ पर।
अब महकती है मेरी रूह तेरे इश्क से,
नहीं उठती उंगलियां मुझ पर।
अब रूह में बसता है तेरा इश्क महक बनकर,
जमाना खुश है मुझे महरूम देखकर।