आज की स्त्री
आज की स्त्री
पूछे द्रौपदी प्रभु से
ऐसा क्या दोष था मेरा
मिला दुख और अपमान
हो गया जीवन पूरा तहस नहस।
कहे ईश्वर तू झांक स्वयं के अंदर
यदि रखा होता थोड़ा धैर्य
तो रोक सकते थे शायद
बहुत कुछ बना सकते जीवन कुछ।
सोचे आज की स्त्री
बोलने से पहले बारंबार
डरती है खुद अपमानित होने से
चलती है बच बच बच कर
राखती है फूंक फूंक कर कदम।