महिला दिवस
महिला दिवस
लो आ रहा हूँ मैं
तुम्हें देने को बधाइयाँ।
शब्द नहीं हैं मेरे पास
करने को बखान।
तुम्हीं हो माता, बहन तुम्हीं
पत्नी तुम्हीं हो
और बेटी तुम्हीं।
तुमसे ही जन्मा मैं
तुमसे ही पोषित,
सिञ्चित तुम्हीं से।
मन प्राण पल्लव ---
है सब कुछ तुम्हीं से,
है सब कुछ तुम्हारा।
मगर आँख मेरी
अटक जा रही है
देह की गंध मुझको
कर रही बावला।
अंतर में मेरे जाग उठा
अंगारे सी आँखों में भर
काम लिप्सा
फैलाए हुए
फन नाग जैसा
डँसने को आकुल
लपलपाती हुई जिह्वा
विष का वमन कर
नराधम हुआ
चोट खा आत्मा
ग्लानि से भर मर मिटी
देह तड़पाती रही तेरी
यूँ दर-ब-दर
सूख आँखों का मेरे
अब पानी गया।
नर से नराधम का
सफर तय कर लिया
हुई शर्मसार कोख तेरी
राखी, कंगन, और सिंदूर भी
लज्जित खड़े।
हाय! न जाने
किस घड़ी ऐसे
पूत जने!!