STORYMIRROR

VIVEK ROUSHAN

Romance

2  

VIVEK ROUSHAN

Romance

महबूब से बिछड़ पाता नहीं

महबूब से बिछड़ पाता नहीं

1 min
210


दिल के गुलिस्ताँ में अब कोई फूल खिलता नहीं 

तुम्हारी तरह कोई और भी तो मुझे मिलता नहीं 


मिल जाता तुम्हारा साथ गर उम्र भर के लिए 

फिर ये दिल यूँ ही तन्हा होकर जलता नहीं 


इंसानों से भरी दुनिया में मैं तन्हा खड़ा हूँ 

चाहूँ फिर भी तन्हाइयों से दिल निकलता नहीं 

उजालों में रहने के बाद अंधेरो में गर जाना हो 

कुछ पल के लिए आँखों को कुछ भी तो दिखता नहीं 


इश्क़ का सफर भी कितना अजीब सफर है 

बिछड़ कर भी दीवाना, महबूब से बिछड़ पाता नहीं 


Rate this content
Log in

Similar hindi poem from Romance