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Praveen Kumar Saini "Shiv"

Romance Classics Inspirational

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Praveen Kumar Saini "Shiv"

Romance Classics Inspirational

मेरी रुह का प्रतिरूप

मेरी रुह का प्रतिरूप

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कहता रहे जिसे जो कहना है

मुझे संग तेरे ही अब रहना है

मोहताज होते हैं वह मिलन के

जिनका रिश्ता शारिरिक होता है


तुम मेरी आत्मा का प्रतिरूप हो

तभी तो काया से नहीं रुह से साथ रहना है

क्यों तुम लोगो के तानों से डर जाते हो

लोगों का काम‌ तो कहना है

पवित्रता की तुम मिशाल हो


फिर क्यों किसी को साबित करना है

हर बात को मन से लगाया नहीं करते

रिश्ते हैं इनमें कभी खाई तो कभी खड्डा भी रहना है

खुशी के लिए बहाना नहीं चाहिए बस

दुख के लिए जरूरी कारण का रहना है


मै नाच लेता लंगुर बन कभी पागल बन कर,

दुख में खुश रहना ही तो खुशी की कला होना है

याद कर मेरे वह शब्द जो होते हैं

मै मस्त रहता हूं मस्ती में

बेशक आग लगी हो बस्ती में

फर्क ना आने दूं अपनी हस्ती में


चल अब खड़े हो जा हमदम मेरे

कि अब अपने लिए जिंदा रहना है

सबके लिए जी लिए बहुत चल अब कि

अपने मन का करके दिखाना और खुश रहना है


यो हौसला हार जाये वो मेरा यार नहीं है

तुम को अब हर दम अपने लिए हंसते रहना है

अभी सफर बहुत बाकी है तुने कहा था जिम्मेदारी

अभी बाकी है चल वो सब निभा कर जल्दी से अपने लिए फ्रि रहना है

शायद तुम को लगे मैं तुम्हें समझ नहीं पा रहा

फिर भी मुझे तो जन्म जन्म साथ रहना है।।


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