मेरी नन्ही कली
मेरी नन्ही कली
बहुत सोचती हूँ
नजरअंदाज़ करूं
कैसे ? सपने व
रात वाली बात को।
सोचती हूँ
अनसुना करूं
कैसे ? मासूम की
उस करुण पुकार को।
रात सपने में आई
वो मासूम कली
आना चाह रही
इस फुलवारी में।
खुशियों भरी
किलकारियों से
चहकना चाह रही
इस घर -आंगन में।
अपने नन्हे
प्यारे हाथों से
उसने गालों को
मेरे छुआ ऐसे।
छू गई हो
मखमली
नर्म, मुलायम
रेशम हो जैसे।
इतनी प्यारी
मासूम,अजन्मी
अबॉर्शन कराके
कोख में मारूँ कैसे ?
अपनी नन्ही कली
को जन्म देने की
प्यारी बात को
मैं टालूँ कैसे ?
भरना चाहती अंक
में नन्ही कली को
लगाना चाहती हूँ
मैं अपने सीने से।
माँ कहलाकर
करना चाहती हूँ
अपनी ढेर सारी
बातें मैं उससे।
