मेरी माँ
मेरी माँ
अमित शक्ति प्रकृति प्रदत्त
पाकर बनी माँ वरद हस्त
कुक्षि किया पोषण मास नव
देकर जन्म अति मुदित मुख तव
स्मित लख तव जगा स्मित
रोदन सुन कष्ट अमित
पालन साधन वक्ष जनित पय
मम जीवन हित बना सुधामय
ममता रख हिय किया मधुपर्क
नहीं उर में था तर्क वितर्क
वर्जनाएं विविध अपनाकर
कष्टों को भी सौख्य बताकर
पोषण किया निज तन मन से
डिगी नहीं कर्तव्य पथ से
जैसा अनुपम किया समंजन
वैसा ही उत्तम प्रबंधन
करता मैं नित नित शुभ वंदन
हो न कोई जीवन में क्रंदन
खिलता रहे तव मुदित मन
वरदान वही, वही उत्तम धन।