मेरी माँ
मेरी माँ
माँ तू अनमोल है
तेरा ना कोई मोल है
तू अंबर के सामान
सबको बांधकर रखती है।
सब कुछ हँसते हुए
चुपचाप सह लेती है
माँँ तू ईश्वर का दिया हुआ
नायाब़ तौह्फ़ा है।
तुझसे बड़ा दूजा कुछ भी नहीं
माँ तुम हम सबके लिए
सुबह से रात तक रसोई में ही
खटती रहती हो।
खाना तो क्या पानी भी
पूछना कभी नहीं भूलती हो
माँ तुम हम सब पर अपना
सर्वस्य न्योछावर कर देती हो।
लेकिन फिर भी सम्मान पाने का
खुद को हकदार नहीं समझती हो
कहती हो कि ये तुम्हारा फर्ज है
तुम्हें कुछ नहीं चाहिए।
मगर फिर भी बिना किसी स्वार्थ के
हमारी हर जरूरतों को पूरा करती हो
कहते हैं माँ शब्द में बड़ी ताकत है
बड़े से बड़े चट्टान को पिघला सकती है।
मगर खुद क्यों अपनी ही संतान
के आगे बेबस हो जाती है
कहते हैं माँ को पृथ्वी से भी
ऊपर का दर्जा दिया गया है।
जो पूरे संसार को
अपने आँचल में समा सकती है
आज उसे अपने ही घरों में
रहने का अधिकार नहीं है।