औरत तेरी यही कहानी
औरत तेरी यही कहानी
वह रोज आंधी की तरह आता
और मर्दानगी दिखाकर चला जाता
वो बेचारी अबला नारी
चीखती चिल्लाती
बौखलाई सी पड़ी रहती
रातें उसकी सिसकियों से गूँजा करती
और वो पगली
सुबह फिर से लग जाती उसकी सेवा में
हर दिन वो किसी न किसी बहाने
उस पर दुराचार करता
कभी उसे अपनी हवस का शिकार बनाता
तो कभी उसे अपने पैरों तले रौंद डालता
और तब भी अगर उसके अहं को तुष्टि न मिले
तो उसे सरे आम बाजार में रूसवा करने से भी न चूकता
मगर फिर भी वो उसके हर एक जुल्म को सहती रहती
स्त्री है वो बचपन से उसे यही सिखाया जाता
कि पुरूषों से ऊपर नहीं दबकर रहना सीखो
और वो इसी मंत्र को पूरे जीवनभर निभाती रहती
लेकिन जब कभी उसके मर्द पर कोई विपदा आती
तो वो अपने साथ हुए सभी दुराचार भूल
उसके आगे माँ काली, माँ दुर्गा बन खड़ी हो जाती
और उसके शत्रु से खुद की परवाह किये बगैर
उसकी रक्षा करती
उसके लिए समाज से लड़ जाती
लेकिन तब कहाँ जाती है
उसके अंदर की माँ दुर्गा, माँ काली
जब खुद पर इतने दुराचार सहती है
तब क्यों नही आती हैं उसके अंदर की देवी
जब रोज वो प्रताड़ित की जाती है
उस मर्द के अहं के हाथों
क्यों चुप रह जाती है
सबकुछ सहती जाती है