मेरी माँ मुझमें रहती है
मेरी माँ मुझमें रहती है
वो दिसंबर की सर्दी में
शॉल ओढ़कर अल्लसुबह उठती है,
अपने हाथ जलते तवे पर रख
मेरे लिए मक्के की रोटी सेकती है!
ज़ब कभी सब्जी में
मिर्च ज़्यादा पड़ जाए तो,
गुड़ की डली मेरे मुँह में रखती है
फिर मुनहार करके दूधरोटी खिलाती है!
हर शाम अगरबत्ती जलाकर
पूजाघर में दिया उसकाती है,
ठाकुर जी के प्रसाद का बड़ा टुकड़ा
मेरे लिए छुपाकर रखती है!
कौन कहता है कि
मेरी माँ अब कहीं और बसती है,
उसकी खुशबू हर जगह है
क्योंकि मेरी माँ अब मुझमें रहती है।
