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Madhu Vashishta

Abstract Classics Inspirational

4.5  

Madhu Vashishta

Abstract Classics Inspirational

जिंदगी गोल है

जिंदगी गोल है

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मालूम है हमें कि दुनिया गोल है।

क्या तुम जानते हो जिंदगी भी गोल है।


बचपन से शुरू हुआ जीवन बस यूं ही दौड़ता रहा।

आगे बढ़ने की धुन में पीछे सब को छोड़ता रहा।


छूट गए स्कूल के दोस्त, मिल गए नए मीत कई।

जवानी क्या आई, फिर खुद के सिवा किसी की भी याद ही ना रही।


पृथ्वी अपनी धुरी पर गोल घूम रही थी

जिंदगी भी आगे की तरफ यूं ही बढ़ रही थी।


घर परिवार और छोटे-छोटे बच्चे बस उन्हीं में सिमटकर जिंदगी चल रही थी।


याद नहीं जीवन का सफर कितना पार कर लिया।

बचपन से बुढ़ापे तक हर दिन था नया नया।


अभी यहां आकर देख

ो जिंदगी ने फिर से यू-टर्न लिया।

जहां से मैं चला था वह तो वही पहुंचा दिया।


बचपन में चलना सीखते हुए वाकर को लिया था।

आज भी तो चलने के लिए मैं वाकर ही ढूंढ रहा था।


छोटे बच्चे और मुझ में कोई फर्क ही तो ना रहा।

एक डाइपर उसके और एक मेरे था लग रहा।


एक आया उस बच्चे की पूरी संभाल करती थी।

मेरे लिए भी तो कमरे में एक अटेंडेंट लगी हुई थी।


बस बच्चे को शुरू से आगे तक दौड़ना था।

और उस बिंदु पर मेरी दौड़ थी पूरी हुई।


जिंदगी गोल है मानो और जी लो यारो।

सब यहीं रह जाएगा खाली हाथ ही आए थे और खाली हाथ ही जाओगे यारों।


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