रे मन
रे मन
मन तू तो परिंदा है
रे मन तू काहे न धीर धरे,
इत उत ही बस तू फिरे।
तू चाहे परिंदा बन जाना,
पग पग उड़ान तू भरे।
मैं चाहूं कुछ खुद में ठहरना,
तू स्वप्नलोक को चले।
मैं चाहूं पल पल की खुशियां,
हो जो भौतिकता से परे।
तू न समझे मेरी वाणी,
पंख फैलाये तू चले।
चलते चलते संग संग तेरे,
कही सुकून न मिले ।।
आजा कुछ पल तो ठहर जा,
अंतस भ्रमण को चले।
छोड़ कर सब माया नगरी,
चल विश्राम तो करे।।