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हरि शंकर गोयल

Abstract Classics Inspirational

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हरि शंकर गोयल

Abstract Classics Inspirational

मुक्तक : शहर की चकाचौंध में

मुक्तक : शहर की चकाचौंध में

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शहर की चकाचौंध में खो गया है मासूम सा दिल 

झूठ के मुलम्मे में छुप गया है बेचारा बच्चा सा दिल 

नकली हंसी का मुखौटा पहन ठगता रहा है ये दिल 

झूठे रिश्तों के मायावी बंधन में बंधता रहा है ये दिल 


लोगों की भीड़ में अपना कोई नजर नहीं आता है 

जो भी टकराता है बस वही ठग कर चला जाता है 

भागमभाग की जिंदगी में खुद के लिए वक्त कहां है 

फुर्सत के दो चार सपने पिरो जाता है ये मासूम दिल 


आगे बढने

की अनाम होड़ में पिछड़ते ही जा रहे हैं सब 

भौतिकतावाद में मानवीय मूल्यों को खोते जा रहे हैं सब 

लोभ लालच के असीम दलदल में धंसते जा रहे हैं सब 

किसी तारणहार की प्रतीक्षा में डूबता ही जा रहा है दिल 


चकाचौंध के पीछे की कालिमा छुपा देते हैं अक्सर लोग 

सफेद कपड़ों में बड़े संभ्रांत से नजर आते हैं असभ्य लोग 

धन दौलत की चाहत में भरोसा खोते जा रहे हैं अब लोग 

शांति की तलाश में किसी कोने में छिपकर बैठा है ये दिल।


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