तब बरसे है नीर
तब बरसे है नीर
तप-तप कर जब तप करे,
होती धरा अधीर।
पिघले तब घन साँवरे,
तब बरसे है नीर।।
प्यासी-प्यासी शाम हो,
भोर विकट गंभीर।
जतन हजारों जान के,
तब बरसे है नीर।।
नदी-नदी व्याकुल हुई,
सूने-सूने तीर।
कंठ हज़ारों सूखते,
तब बरसे है नीर।।
आँखों में विरहन लिए,
इक बदली की पीर।
बदली से बदली मिले,
तब बरसे है नीर।।
ख़ाली-ख़ाली मटकियाँ,
भटके दर-दर हीर।
राँझे थक कर लौटते,
तब बरसे है नीर।।
वृक्ष पुराने जानते,
बादल की तासीर।
मौसम को चिट्ठी लिखें,
तब बरसे है नीर।।