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Rashmi Sthapak

Classics

4  

Rashmi Sthapak

Classics

तब बरसे है नीर

तब बरसे है नीर

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तप-तप कर जब तप करे,

होती धरा अधीर।

पिघले तब घन साँवरे,

तब बरसे है नीर।।


प्यासी-प्यासी शाम हो,

भोर विकट गंभीर।

जतन हजारों जान के,

तब बरसे है नीर।।


नदी-नदी व्याकुल हुई,

सूने-सूने तीर।

कंठ हज़ारों सूखते,

तब बरसे है नीर।।


आँखों में विरहन लिए,

इक बदली की पीर।

बदली से बदली मिले,

तब बरसे है नीर।।


ख़ाली-ख़ाली मटकियाँ,

भटके दर-दर हीर।

राँझे थक कर लौटते,

तब बरसे है नीर।।


वृक्ष पुराने जानते,

बादल की तासीर।

मौसम को चिट्ठी लिखें,

तब बरसे है नीर।। 


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