नाउम्मीदी से उम्मीद...
नाउम्मीदी से उम्मीद...
यादें कभी हंसाती है…कभी रोने का सबब भी बन जाती हैं…
यादें ज़िन्दगी छीनकर... कभी-कभी जीना भी सिखाती हैं…
कुछ यादों से कभी कोई उम्मीद भले ही न हो…
जाने क्यों? फिर भी उन यादों को हम खुद में कसकर समेटे रखते हैं…
भले उन यादों से जुड़ी ख़ूबसूरत लम्हों की झलकियां…
इस नए वक्त में हमें सिसकियां ही क्यों न दे रहीं हों…
फिर भी…जाने क्यों.. उन नाउम्मीद सी यादों का…
उम्मीद भरा मद्धम सा दीया ..हम अपने दिल में महफ़ूज रखते हैं…
कि… कभी तो कोई अपने हाथों से उस दिये को बुझने से बचाएगा…
उस याद भरी संदूक में…एक ख़ास नाम अपना भी दर्ज कराएगा…