Sumedha Chaturvedi

Drama

5.0  

Sumedha Chaturvedi

Drama

मेरी कुछ नमकीन यादें।

मेरी कुछ नमकीन यादें।

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हर वो बीते पल यादें बन जातीं हैं,

कभी ख़ुशी दे जाती हैं,

तो कभी इन आँखों को नम कर जाती हैं !


पर जैसी भी होती है ये दिल को छू देती है। 

ये मुमकिन नहीं है अभी की मैं अपनी

यादों की एक किताब लिख सकूँ 

पर हाँ कुछ चंद पँक्तिया तो आपसे ज़रूर बताना चाहूंगी। 


तकिया क्या चीज़ होती थी, कहाँ था हमने जाना ?

अपना सर माँ बाप के हाँथ पर रख कर सोना, यही था हमने जाना

हाँ आज भी याद है मुझे वो सुकून वाली ज़िन्दगी जो हमने है जिया। 


क्या होता था विडियो गेम और क्या था प्ले स्टेशन

हम तो बड़े हुए खेल के मिट्टी के खिलौना। 

हाँ आज भी याद है मुझे वो कागज़ के नाव तैराना,

और हवाँ में हवाई जहाज़ उड़ाना।


गर्मियों के छूट्टी में कौन जाता था हिल स्टेशन

हम तो बड़े हुए घूम कर खेत और खलिहान।

हाँ आज भी याद है मुझे वो गर्मियों में बर्फ के गोले खाना 

और टेढ़े मेढ़े उन मेढ़ पर रेल गाड़ी चलना। 


क्या होता था चंपक ये कहाँ था हमने जाना

हम तो बड़े हुए सुन कर दादा दादी से कहानियाँ। 

हाँ आज भी याद है मुझे वो किस्से और कहानियाँ

वो हूँ हूँ कारी भरना और कभी कहानी सुनते सुनते सो जाना।


कहाँ होता था पहले पे टी एम या गूगल पे

हमने तो था सीखा पैसों से मिठाइयाँ ख़रीदना।

हाँ आज भी याद है मुझे वो चावल गेंहू के बदले टॉफियाँ पाना।


पार्कर पेन का नहीं दवात का था वो ज़माना

हाँ आज भी याद है मुझे चिट्ठी लिख कर बातें करना 

और डाकिये का हर त्योहार पर अपने घर लिफाफा लाना। 


हर ज़िद पूरी होना, माँ बाप का दुलारी होना

भाई बहन के साथ शैतानियाँ करना, लड़ना और झगड़ना।

हाँ आज भी याद है मुझे सुबह सुबह बगीचों से फूल तोड़ना,

और माँ के साथ पूजा के वक़्त आरती करना और घंटी बजाना।

 

जब कैसे चलना है के लिए सोचना नहीं पड़ा 

ओला करें या उबर के लिए अपना फ़ोन देखना नहीं पड़ा  

माँ बाप के गोद में आना और जाना, 

उनके आँचल के सहारे ए. सी. का आनंद पाना 

हाँ आज भी याद है मुझे।


इतनी सुकून की ज़िन्दगी अब यादें ही रह गयी हैं

दादा दादी नहीं है साथ और आँखें नम हो गयी हैं 

तरक्की तो हुई है पर वो ज़िन्दगी अब कहाँ रह गयी है ?

यादें थी वो बस और यादें ही रह गयी है। 


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