वो कान्हा किसका था
वो कान्हा किसका था
वो बच्चा कितना प्यारा था
ना भूखा था ना प्यासा था
पर जाने क्यों चुपके से वो
मेरे आँचल में छुप जाता था
हौले से जब वो सर को अपने
मेरे सिने से जो लगाता था
एक स्नेह प्यार का मेरे दिल में
बेपनाह बेवजह जगा देता था
मेरी उँगलियाँ जब उसके माथे को
ममता से फेरा करती थी
वो चैन की नींद ले, कर के
मेरे गोद में सो जाता था
अचानक हुई कुछ ऐसी आहाट से
वो यूँ मुझसे दूर भागा था
अनजाने में वो बुद्धू
मेरे दिल से धड़कन ले बैठा था
वो था कान्हा देवकी का
इसलिए यशोदा का घर छोड़ा था।