मेरी कलम
मेरी कलम
आज मेरी कलम लिखते लिखते रुक गई,
मैने पूछा क्यों सखी तू भी मुझ से रूठ गई।
एक तू ही तो है जो मेरे दिल को समझती है,
तू भी मुझ से आँख फेर गई।
वह बोली...
नहीं सखी मैं कैसे रूठ सकती हूँ,
तेरे दिल का हाल मे खूब समझती हूँ।
दिल तेरा रोता है आँसू मेरे निकलते हैं,
तेरे हर ज़ख्म मेरे आँसुओं से झलकते है।
हाँ रूकी.....क्योंकि हूँ परेशान,
नहीं देख सकती तुझे यूँ उदास मेरी जान।
सोचती हूँ ..., कभी वो घड़ी भी आयेगी?
तेरी ख़ुशियों की दास्तान मुझ से लिखी जायेगी।
मैं बोली ए मेरी कलम..,तू कितनी प्यारी है,
तुम से तो मेरे जीवन की साझेदारी है।
है ग़म तो ख़ुशी भी ज़रूर आयेगी,
देखना एक दिन तेरी यह सखी भी मूसकरायेगी।
होगा वह पल बहुत खूबसूरत,
जब तू कागज़ पर झूम के गायेगी।
