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मेरी दुनिया

मेरी दुनिया

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यहाँ मेरे अपने गड्ढे़े है,मेरे अपने पहाड़ है,

यहाँ शेर भी रोता है, और कोयल की दहाड़ है,


जमीन के नीचे मैं बहता हूँ, हरदम चलूँ, ना थकता हूं,

रोज नई इमारत बनाता हूँ, हर दम गिरूं, ना मरता हूँ,


यहां सब एक घर में रहते हैं, मैं खुद ही से बस लड़ता हूँ,

हर कदम में जितना बढ़ता हूँ, उतना ही खुद में पड़ता हूँ,,


अगले प्रहर नई मंजिल बनाता हूँ, हर पल में डगता हूँ,

उजली राहों के बीच सो जाता हूं, रातों को मैं जगता हूँ,


हर धड़कन खामोश हो जाती हैं, दीवारें जब राज़ कूकती है,

सांसे एक साथ चल उठती है, आज़ादी जब बेड़िया फूंकती है,


मैं ही यहां का राजा हूँ, खुद ही का मैं कैदी हूँ,

यही दुनियां है मेरी, हर दिन बनाता हूँ, हर दिन मिटाता हूं !



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