मेरी दोस्त
मेरी दोस्त


तुम्हें ढूँढने किस गली, किस सड़क पर जाऊँ
मैं तुम्हारे जैसी दोस्त कहाँ से पाऊँ
जो तुमसे बोला करती थी
वो किस्से किसे सुनाऊँ
माना तुम्हें खुशियाँ मिली पर
अपनी तन्हाई पर
बोलो मैं कैसे मुस्काऊँ
तुम्हारी मेरी दोस्ती का
गहरा एक समुद्र था
अब सूखी अपनी नदियां में
मैं कैसे डुबकी लगाऊँ
पंछी बन तुम उड़ गयी
अब मैं पंख कहाँ से लाऊँ
जहाँ तुम जैसी मूरत मिले
वो मंदिर न ढूँढ पाऊँ।