मेरी दीदी - मेरी प्रेरणा
मेरी दीदी - मेरी प्रेरणा
बचपन के उस साहस को देखा
जब मेरी दीदी भिड़ जाती
बड़ों बड़ों से मुझे बचाने को।
उस स्नेह प्यार को देखा
मुझे लगी मामूली चोट पर
बह जाती थी जिसकी अश्रु धारा।
मुझे याद नहीं उसने मुझसे बेहतर
कभी खाया हो पहना हो
और या किसी चीज की आस की हो।
तूने मां जैसा न्योछावर किया सब
तुझसे जुड़ी हर बात याद आती अब
तू अपने लिए जी थी कब।
हद तो तब थी जब हर बात
मुझसे ले के तू अपने सर लेती थी
बापू की पिटाई से मुझे बचाने को।
लोग मां की ही गाथा गाते हैं
सच है, पर मेरी दीदी उस से बढ़ के
तू साथ थी मेरे पास सब था।
हम बड़े क्यों हो जाते हैं
तुझसे जुदा हो के सब छूट गया
तेरे परिवार मेरा परिवार में सब टूट गया।