मेरे मंडप में
मेरे मंडप में
चुरा लूँ चमक तेरे माथे की बिंदी से
और सूरज सा जमीं पे उतर आऊँ
या ले लूँ रंग तेरे काज़ल से और
बन स्याही
मेरे अल्फाज़ तेरी धड़कनों में उतारूँ
लाली तेरे गालों की समेट लूँ अपने
हाथों में
मैं गुलाबों सा महकता गुलिस्ताँ बनाऊँ
या फिर ले लूँ गुरुर तेरी नथनी से
तेरी हया के लिये फ़लक पे लटक जाऊँ
झुलूँ तेरे कानों से कुंडल की माफ़िक
फुसफुसाकर मेरी हर बात तेरी कानों
में उतारूँ
या बनूँ मंगलसूत्र तेरे सुर्ख गले का
मैं अमंगल सा प्राणी सदा के लिये
मंगल हो जाऊँ
ले के खनक तेरे हाथों के कंगन से
तेरी रंगत के लिये इन फिज़ाओं में
खनकता जाऊँ
या फिर तेरी हो पायलों की छन छ्न
मैं धूल सा कण तेरे पग-पग से
लिपटता जाऊँ
तू आके बैठ आज मेरे शामियाने में
तेरे साथ साथ अपनी मुहब्बत की
सारी रस्में निभाऊँ
*शामियाने- मंडप

